"एक थाली अनाज की कीमत – भूख से बड़ी इज्जत"

"एक थाली अनाज की कीमत" – वीरता जो पेट से बड़ी थी

मारवाड़ के एक छोटे गाँव में एक बुज़ुर्ग राजपूत किसान रहता था। खेत कम थे, बरसात सालों से नहीं हुई थी, और घर में बस थोड़ी-सी बाजरे की बोरी बची थी।
उस अनाज से उसका परिवार मुश्किल से एक हफ्ता और जी सकता था।

एक रात, दरवाज़े पर दस्तक हुई।
बाहर एक जवान सैनिक खड़ा था — थका हुआ, भूखा, और घायल। वो कह रहा था कि किले तक जाने के लिए उसके पास ताकत नहीं बची, और कई दिन से उसने कुछ नहीं खाया।

बुज़ुर्ग ने उसे अंदर बुलाया। घर की बहू ने फुसफुसाकर कहा,
"बाबा, अगर ये अनाज दे देंगे तो हम क्या खाएंगे?"

बुज़ुर्ग ने जवाब दिया,
"हम भूखे रह सकते हैं… लेकिन ये जवान भूखा रहा तो शायद कल हमारा गाँव ही न बचे।"

उन्होंने अपनी थाली में रखा आखिरी बाजरा पकाकर सैनिक को खिला दिया।
अगले दिन वो सैनिक दुश्मनों को रोकने के लिए लड़ा… और जीत गया।
लेकिन जब वो वापस आया, उस बुज़ुर्ग के घर में सन्नाटा था — भूख ने परिवार की जान ले ली थी।

किले के दरवाज़े पर उस सैनिक ने उनके नाम की एक पट्टिका लगवाई, जिस पर बस इतना लिखा था —
"जिन्होंने अपनी भूख से ज़्यादा हमारे मान को तौला।"

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